bhagwat puran: विकासखण्ड तमकुही के ग्राम श्रीराम पट्टी में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्व 0 राजाराम लाल श्रीवास्तव की पाँचवीं पुण्यतिथि के अवसर पर आयोजित श्रीमद्भागवत कथा में वृन्दावन धाम से पधारे कथावाचक अभिन्वानन्द महराज ने श्रोताओं को ब्रह्मा द्वारा किये गये सृष्टि की रचना के साथ ही मनु और शतरुपा के जन्म की कथा विस्तार से सुनायी।
भागवत कथा के तीसरे दिन मंगलवार की रात्रि उपस्थित श्रोताओं को कथा सुनाते कथावाचक ने कहा कि ब्रह्मा ने आदि-अनन्त देव भगवान की खोज करने के लिये कमल की नाल के छिद्र में प्रवेश कर जल में उनको अन्त तक ढूंढा परन्तु लाख प्रयास करने के बाद भी भगवान उन्हें कहीं भी नहीं मिले।
समय बीतता गया लेकिन भगवान नहीं मिले।ब्रह्मा जी अपने अधिष्ठान भगवान को खोजने में सौ वर्ष व्यतीत कर दिये फिर भी उनके ईष्ट उनको नहीं मिले।अन्त में थक-हारकर ब्रह्मा जी ने समाधि ले लिया।इस समाधि के दरम्यान ब्रह्मा जी को पुरुषोत्तम भगवान से सृष्टि रचना का आदेश प्राप्त हुआ।
तब ब्रह्मा जी कमल के छिद्र से बाहर निकलकर कमल कोष पर विराजमान हो गये और कमल कोष के तीन विभाग भूः भुवः स्वः किये।उनके मन से मरीचि,नेत्रों से अत्रि,मुख से अंगिरा,कान से पुलस्त्य, नाभि से पुलह, हाथ से कृतु,त्वचा से भृगु, प्राण से वशिष्ठ,अंगूठे से दक्ष तथा गोद से नारद उत्पन्न हुये।इसी प्रकार उनके दायें स्तन से धर्म,पीठ से अधर्म, हृदय से काम,दोनों भौंहों से क्रोध,मुख से सरस्वती,नीचे के ओंठ से लोभ, लिंग से समुद्र तथा छाया से कर्दम ऋषि प्रकट हुये।इस प्रकार यह सम्पूर्ण जगत ब्रह्मा जी के मन और शरीर से उत्पन्न हुये।
ब्रह्मा जी के पूरब वाले मुख से ऋग्वेद,दक्षिण वाले मुख से यजुर्वेद, पश्चिम वाले मुख से सामवेद और उत्तर वाले मुख से अथर्ववेद की ऋचाएँ निकलीं।तत्पश्चात ब्रह्मा जी ने आयुर्वेद, धनुर्वेद,गन्धर्ववेद और स्थापत्व आदि उप-वेदों की रचना की।उन्होंने अपने मुख से इतिहास पुराण उत्पन्न किया और फिर योग विद्या, दान, तप, सत्य, धर्म आदि की रचना की।उनके हृदय से ओंकार,अन्य अंगों से वर्ण,स्वर, छन्द आदि तथा क्रीड़ा से सात सुर प्रकट हुये।
इस सबके बावजूद भी ब्रह्मा जी को लगा कि मेरी सृष्टि में वृद्धि नहीं हो रही है तो उन्होंने अपने शरीर को दो भागों में विभक्त कर दिया जिनका नाम 'का' और 'या' (काया) हुये। उन्हीं दो भागों में से एक से पुरुष तथा दूसरे से स्त्री की उत्पत्ति हुयी।ब्रह्मा जी ने पुरुष का नाम मनु व स्त्री का नाम शतरूपा रखा।
मनु और शतरूपा ने ही मानव संसार की शुरुआत की।एक बार ब्रह्मा जी ने एक घटना से लज्जित होकर अपना शरीर त्याग दिया।उनके उस त्यागे हुये शरीर को दिशाओं ने कुहरा और अन्धकार के रूप में ग्रहण कर लिया।कथा के दौरान छेदी राय,अरुण श्रीवास्तव,वृन्दा मिश्रा,
नन्दकिशोर शर्मा, विपिन बिहारी श्रीवास्तव, प्रभात श्रीवास्तव , सुभाष राय, नगीना राय, आनन्द मोहन श्रीवास्तव, रामअवध ओझा,अमित श्रीवास्तव, धीरज श्रीवास्तव,प्रमोद श्रीवास्तव,उदयभान श्रीवास्तव,देवेन्द्र पाण्डेय,जनार्दन राय, विरेन्द्र राय,गया शर्मा,अवध किशोर शर्मा व दिनेश श्रीवास्तव आदि मौजूद रहे।
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