सीतापुर। पांच साल तक जो प्रधान अपनी ग्राम पंचायतों का समुचित विकास नहीं कर सके वह फिर से एक बार जनता को लूटने की तैयारी करने लगे हैं। ग्राम पंचायतों का तो विकास नहीं हुआ लेकिन लेकिन प्रधान का खूब विकास हुआ। जिसके चलते साइकिल से व दूसरों की बाइक मांग कर चलाने वाले तमाम ग्राम प्रधान अपनी चमचमाती चार पहिया कार से घूमने लगे हैं। यहां तक कुछ ग्राम प्रधानों ने बड़े-बड़े आलीशान मकान और ट्रक भी जनता को लूट कर खरीद लिए चुनाव प्रक्रिया की घोषणा होते ही निवर्तमान प्रधान व पहली बार भाग्य आजमाने उतरे प्रधान पद के प्रत्याशी पूरे उत्साह के साथ चुनावी वैतरणी को पार करने के लिए छलांग लगाना शुरू कर दिए हैं। चुनाव जीतने के लिए साम दाम दंड भेद की नीत अपना रहे हैं। आखिर लोगों के दिमाग में यह सवाल होगा कि चुनाव में ऐसा क्या है कि यह लोग जीतने के लिये इतनी जतन कर रहे हैं। दरअसल इसके पीछे एक बड़ी वजह है गांव के विकास के लिए सरकार से मिलने वाला लाखों रुपए का बजट 5 सालों तक सिर्फ अपना विकास करने वाले फ टीचर से करोड़पति बने प्रधान एक बार फिर से अपनी किस्मत आजमाने जनता के बीच निकले हैं। बताते चलें पंचायती राज व्यवस्था में प्रधानों को वर्ष 1985 से पहले ना तो आज की तरह से इतना बजट आता था नहीं इतने अधिकार प्राप्त थे। सरकारी योजनाएं लागू होने के बाद सबसे पहले वर्ष 1995 में चुनाव कराए गए थे। तब से प्रधानों का कद दिन प्रतिदिन बढ़ता गया प्रधान बनने वाले को भले ही अपने अधिकारों व विकास योजनाओं के बारे में जानकारी न हो पर वो आने वाले बजट के बारे में बड़ी बेसब्री से बराबर इंतजार करते रहते हैं। पंचायती राज व्यवस्था में प्रधान का पद अधिकार और पैसे के कारण अधिक महत्वपूर्ण हो गया है। विभिन्न योजनाओं के क्रियान्वयन से लेकर स्वास्थ्य, शिक्षा, निर्माण कार्य, खाद्यान्न, दुकाने व पेंशन योजनाओं के निर्धारण आदि के लिए के लिए प्रधानों के पास धन वर्षा होती रहती है। इसी के चलते प्रधान बनते ही पांच साल में ब्यक्ति फ टीचर से करोड़पति हो जाते हैं। जिनको कभी साइकिल नसीब नहीं होती थी। उनको वह प्रधान बनते ही चमचमाती कार के मालिक हो जाते हैं। ग्राम पंचायतों के विकास कार्यों के लिए विभिन्न योजनाओं के माध्यम से लाखों रुपए हर वर्ष विकास के लिए आवंटित किया जाता है। इसमें प्रधानमंत्री आवास मनरेगा शौचालय व निर्माण कार्य के लिए हर साल ग्राम पंचायतों द्वारा खर्च किया जाता है। इस बजट से गांव की राजनीति का पारा सातवें आसमान पर पहुंच गया है। वर्ष 2005 से ग्राम पंचायतों के विकास के लिए कुबेर का खजाना आना शुरू हो गया था। मिनी सचिवालय निर्माण के बीआरजी एफ योजना के लिए लाखों रुपये की धनराशि आवंटित की जाती है। गांव की गलियों को अंधेरा मुक्त करने के लिए भी स्ट्रीट लाइटें लगवाई जाती हैं। इनमें जमकर धन कमाने का खेल खेला जाता है। अगर अगर किसी ग्राम पंचायत में ग्राम प्रधानों द्वारा लगवाई गई स्ट्रीट लाइटों का निष्पक्षता से जांच करवा ली जाए तो इन भ्रष्टाचारियों के तावों पर रोटियां सेकने वाले की कलाई खुलने में देर नहीं लगेगी।
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