उत्तर प्रदेश पंचायत चुनाव पर हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने राज्य सरकार व राज्य चुनाव आयोग को प्रदेश में त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों के लिए वर्ष 2015 को आधार वर्ष मानकर सीटों पर आरक्षण लागू करने के आदेश दिये हैं। इसके साथ ही न्यायालय ने पंचायत चुनाव पूरा कराने के लिए सरकार व आयोग को दस दिनों का अतिरिक्त समय प्रदान करते हुए समय सीमा 25 मई तय कर दी है। न्यायालय ने राज्य सरकार के 11 फरवरी 2021 के शासनादेश को भी रद्द कर दिया है। आदेश में कहा गया है कि उक्त शासनादेश लागू करने से आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत से ज्यादा हो जाएगी।यह आदेश न्यायमूर्ति रितुराज अवस्थी व न्यायमूर्ति मनीष माथुर की खंडपीठ ने अजय कुमार की ओर से दाखिल जनहित याचिका पर पारित किया।
याचिका में 11 फरवरी 2021 के शासनादेश को चुनौती दी गई थी, साथ ही आरक्षण लागू करने के रोटेशन के लिए वर्ष 1995 को आधार वर्ष मानने को मनमाना व अविधिक करार दिये जाने की बात कही गई थी। न्यायालय ने 12 मार्च को अंतरिम आदेश में आरक्षण व्यवस्था लागू करने को अंतिम रूप देने पर रोक लगा दी थी। सोमवार को महाधिवक्ता राघवेंद्र सिंह ने राज्य सरकार का पक्ष रखते हुए माना कि सरकार ने वर्ष 1995 को मूल वर्ष मानकर गलती की। उन्होंने कहा कि सरकार को वर्ष 2015 को मूल वर्ष मानते हुए सीटों पर आरक्षण लागू करने को लेकर कोई आपत्ति नहीं है। याची के अधिवक्ता मोहम्मद अल्ताफ मंसूर ने दलील दी कि 11 फरवरी 2021 का शासनादेश भी असंवैधानिक है क्योंकि इससे आरक्षण का कुल अनुपात 50 प्रतिशत से अधिक हो रहा है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारित एक निर्णय की नजीर देते हुए उन्होंने कहा कि इस प्रकार के एक मामले में शीर्ष अदालत महाराष्ट्र सरकार के शासनादेश को रद्द कर चुकी है। न्यायालय ने मामले के सभी पहलुओं पर गौर करने के बाद 11 फरवरी 2021 के शासनादेश को रद्द कर दिया।
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