केवल जनसांख्यिकीय के चलते ही चीन में शादी की दर में गिरावट नहीं हुई है, बल्कि चीन में अब महिलाएं अधिक शिक्षित और आर्थिक रूप में स्वतंत्र हुई हैं. दरअसल, 1990 में चीन सरकार ने नौ साल की शिक्षा को अनिवार्य कर दिया. इससे गरीब क्षेत्रों में रहने वाली लड़कियां भी स्कूलों तक पहुंची. वहीं, 1999 में सरकार ने उच्च शिक्षा में विस्तार दिया. सरकार के इन निर्णयों के चलते महिलाओं को उच्च शिक्षा हासिल होना शुरू हो गया.2016, महिलाओं ने उच्च शिक्षा कार्यक्रमों में पुरुषों को पछाड़ना शुरू किया. कॉलेज में महिला छात्रों की संख्या 52.5 फीसदी और पोस्ट ग्रेजुएशन में इनकी संख्या 50.6 फीसदी हो गई. उच्च शिक्षा से महिलाओं को आर्थिक आजादी मिली और इनका शादी के प्रति रवैया बदल गया. हालांकि, चीनी समाज अभी भी पितृ प्रधान है,
इस कारण महिलाओं को लगता है कि अगर वो शादी करती हैं, तो उन्हें जीवनभर अपनी जिंदगी किचन में ही गुजारनी पड़ेगी.लगातार गिरती आबादी के चलते चीन सरकार चिंतित है और अब इसने कदम उठाने भी शुरू कर दिए हैं. लेकिन लोगों को जागरूक करने के लिए अभी भी चीन प्रोपेगैंडा का ही सहारा ले रहा है. चीनी मीडिया द्वारा प्रोपेगैंडा फैलाया जा रहा है कि बच्चे का जन्म एक पारिवारिक मसला ही नहीं है, बल्कि ये देश का भी मसला है. शहरों और गांवों में लोगों से दो बच्चों को पैदा करने को कहा जा रहा है.सरकार चाहती है कि नए बच्चे पैदा हो, ताकि आबादी युवा रहे. अब चीन में Two Child Policy लाई गई है, इसके अलावा, प्रांतीय सरकारों ने राष्ट्रीय मानकों के अनुसार 98 दिनों से अधिक के मातृत्व अवकाश को बढ़ाकर 190 दिनों तक कर दिया है. कुछ शहरों ने एक दूसरे बच्चे के साथ जोड़ों को नकद अनुदान देना भी शुरू कर दिया. चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (CCP) की यूथ विंग कम्युनिस्ट यूथ लीग को शादी करवाने की जिम्मेदारी सौंपी गई है, जो ब्लाइंट डेट करवा रहे हैं, ताकि लोगों को अपना जीवनसाथी मिल सके.
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