एटा सरस्वती विद्या मंदिर सीनियर सेकेंडरी स्कूल एटा के सभागार में गुरु तेगबहादुर की जयंती के उपलक्ष में कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ विद्या भारती के ब्रज प्रदेश के प्रांत संगठन मंत्री हरीशंकर जी ने दीप प्रज्ज्वलन एवं पुष्प अर्चन करके किया। प्रांत संगठन मंत्री मैं अपने विचार व्यक्त करते हुए सिख पंथ परंपरा के 10 गुरुओं के बारे में जानकारी के साथ-साथ नवे गुरु तेग बहादुर जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व के बारे में जानकारी कराते हुए उपस्थित विद्यार्थियों को प्रेरित किया। इसके साथ-साथ उन्होंने कहा कि हमें अपने सभी धार्मिक पर्वो राष्ट्रीय पर्वों एवं महापुरुषों की जयंतियों को अवश्य मनाना चाहिए। इससे हमारी सांस्कृतिक विरासत को सुदृढता प्राप्त होती है । भवनाथ झा नें गुरु तेग बहादुर का जीवन परिचय से अवगत कराते हुए कहा उनका जन्म 1 अप्रैल 1621 को अमृतसर में हुआ । उनका बचपन का नाम त्यागमल था । उनकी वीरता से प्रभावित होकर उनके पिता ने उनका नाम त्यागमल से बदलकर तेग बहादुर दिया था। मात्र 14 वर्ष की आयु में अपने पिता के साथ मुगलों के हमलो के खिलाफ हुए युद्ध में उन्होंने वीरता का परिचय दिया। युद्ध स्थल में भीषण रक्त पात से गुरु तेग बहादुर के वैरागी मन पर गहरा प्रभाव पड़ा और उनका मन आध्यात्मिक चिंतन की ओर हुआ। धैर्य वैराग्य और त्याग की मूर्ति गुरु तेग बहादुर ने एकांत में 20 वर्ष तक बाबा बकाला नामक स्थान पर साधना की। इन्होंने प्रयाग पटना असम आदि क्षेत्रों में आध्यात्मिक सामाजिक आर्थिक उन्नयन के लिए रचनात्मक कार्य किए । यह सिख पंथ के नए गुरु बनाए गए। कुमुदेश कुमार द्विवेदी ने औरंगजेब के काल में गुरु तेग बहादुर से संबंधित प्रेरक प्रसंग सुनाकर वर्तमान पीढ़ी को हिंदू तो एवं धर्म की रक्षा के लिए वीरता परिचय देने के लिए प्रोत्साहित किया । डरो राजोरिया निकाल भारत के युवाओं में आज का उसे ही अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया है गुरु तेग बहादुर से क्यों के नवाब रुठे जिन्होंने s1 पंत के प्रथम गुरु नानक देव द्वारा बताए गए मार्ग का अनुसरण किया उनके द्वारा रचित 115 पाद पवित्र ग्रंथ गुरु ग्रंथ साहिब में सम्मिलित है। उन्होंने मोबाइल शासक औरंगजेब द्वारा कश्मीरी पंडितों तथा हम हिंदुओं को बल पूर्वक मुसलमान बनाने का विरोध किया। इस्लाम स्वीकार ना करने के कारण 1675 में औरंगजेब ने उनका सार्वजनिक रूप से सिर कटवा दिया। विश्व इतिहास में धर्म एवं मानवीय मूल्यों आदर्शों एवं सिद्धांत की रक्षा के लिए प्राणों की आहुति देने वाले वीरों में गुरुतेग बहादुर का स्थान अद्वितीय है। हमारी युवा पीढ़ी को ऐसे बलिदानी महापुरुषों के चरित्र से प्रेरणा लेनी चाहिए। वर्तमान में हमें युवा प्रतिभाओं को सभालने की जरूरत है। क्योंकि पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव उन्हें गुमराह और पथभ्रष्ट कर रहा है। जिससे अभिभावक और अध्यापक भी चिंतित हैं । इसके लिए सतर्कता पूर्वक उनका मार्गदर्शन नितांत आवश्यक है। शाम सुंदर शुक्ल ने कहा के मुगल काल में जबरन धर्मांतरण करके हिंदुओं को मुसलमान बनाने के लिए प्रयास किए गए किन तो आज भी लव जिहाद आदि के द्वारा धर्मांतरण के तरीके अपनाए जा रहे हैं युगो युगो से यही हमारी बनी हुई परिपाटी है,खून दिया है मगर नहीं दी कभी देश की माटी है। गीत प्रस्तुत कर के अपने विचार व्यक्त किए। इस अवसर पर रमन प्रताप सिंह मनोज सिकरवार विजय नागर पवन कुमार संयोगिता भारद्वाज सत्यसील मिश्रा विनय वशिष्ठ डॉ राहुल शर्मा श्याम भारद्वाज डॉक्टर संजीव सिंह सत्य प्रकाश पाठक सूबेदार सिंह सुनीता जैन कुसुम पांडे सुनीता उपाध्याय योगेंद्र सिंह ममता उपाध्याय के जी अग्रवाल यादवेश कृष्ण कांत पांडे विवेक पांडे दया शंकर पचौरी अलका सक्सेना निधि पांडे सुखबीर सिंह वीरेश कुमार दीपक राघव शैलेश प्रताप लोकेंद्र सिंह कामिनी राठी कीर्ति सिंह रवीश चंद्र विवेक दुबे कुलदीप कुमार अंजू सीता शर्मा लवली शर्मा रिया अग्रवाल सौरभ गुप्ता शिवकांत शिखा सक्सेना अनिल कुमार वर्षा गुप्ता सोनिया माहेश्वरी सोनम सैगर अनीता वर्मा पंकज मलिक आलोक जैन सोनिया माहेश्वरी हरी बाबू शर्मा संदीप मिश्र सहित छात्र-छात्राओं की उपस्थिति रही।
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