कानूनी अधिकारों के प्रति जागरूक हों महिलाएं”
आत्मरक्षा के लिए महिलाओं और छात्राओं को उपाय सीखने चाहिए
-डॉ. वीरेंद्र स्वरूप इंस्टीट्यूट ऑफ प्रोफेशनल स्टडीज में विधिक जागरूकता कार्यक्रम संपन्न
ब्यूरो कार्यालय (कानपुर):डॉ. वीरेन्द्र स्वरूप इंस्टीट्यूट ऑफ प्रोफेशनल स्टडीज में राष्ट्रीय महिला आयोग (नई दिल्ली) के संयुक्त तत्तावधान में बीएड विभाग की तरफ से सेमिनार हाल में महिला विधिक जागरुकता कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का उद्देश्य महिलाओं को कानून से संबंधित उनके अधिकारों से परिचित कराकर उनका सशक्तिकरण करना है। विधिक जागरुकता से कानून के शासन की स्थापना की दिशा में प्रगति होती है। विधिक जागरुकता से आशय कानूनी ज्ञान की नहीं बल्कि इसका आशय है कानून से संबंधित उस क्षमता से है जो किसी समाज में अर्थपूर्ण जीवन जीने के लिए जरूरी होती है।
कार्यक्रम का शुभारंभ कॉलेज की प्राचार्या डॉक्टर पूनम मदान और आमंत्रित अतिथियों के दीप प्रज्जवलन व सरस्वती पूजा-अर्चन के साथ किया गया। प्राचार्या डॉ. पूनम मदान ने ज्वलंत और समाचीन विषय पर कार्यक्रम आयोजित करने को सहमति प्रदान करने के लिए सचिव महोदय गौरवेन्द्र स्वरूप का आभार जताया। उन्होंने कहा कि मैं अपने बोर्ड ऑफ मैनेजमेंट की वरिष्ठ सदस्या कुमकुम स्वरूप व श्रीमती अनंता स्वरूप जी का भी हार्दिक अभिनंदन करती हूं जिनका शुभाशीष हमारे लिए हमेशा ही प्रेरणा का स्रोत रहा है।
सखी केन्द्र महिला मंच की सचिव नीलम चतुर्वेदी ने महिलाओं से संबंधित विभिन्न कानूनों के बारे में विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने कहा कि कानून तो बहुत हैं लेकिन हमें उनका इस्तेमाल हथियार के रूप में करना आना चाहिए। उन्होंने कहा कि जो भी महिलाओं के हित के लिए कानून बने हैं, उनके लिए विभिन्न महिला संगठनों को लंबी लड़ाई लड़नी पड़ी है। सुप्रीम कोर्ट की तरफ से बनाई गई विशाखा गाइड लाइन (सेक्सुअल हरिस्मेन्ट रोकने को बनाई जाने वाली कमेटी) के बारे में भी बताया। उन्होंने कहा कि कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न को रोकना होगा क्योंकि इससे आउटपुट प्रभावित होता है। महिलाओं पर होने वाली शारीरिक, मानसिक, घरेलू हिंसा एवं कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न की घटनाओं का खुलकर जिक्र किया और इसके प्रति सभी छात्राओं को जागरुक किया। साथ ही बताया कि सभी महिलाओं को भी आत्मरक्षा के उपाय सीखना चाहिए।
डीबीएस कालेज की असिस्टेन्ट प्रोफेसर डॉ. रत्नर्थुः मिश्रा ने कहा कि मीडिया में महिलाओं का जैसा स्वरूप प्रस्तुत किया जा रहा है उससे किशोरों में आपराधिक प्रवृत्ति उत्पन्न हो रही है। क्योंकि उनका अभी अमूर्त चिन्तन विकसित ही नहीं हुआ है। घरेलू हिंसा के मामले मान सम्मान के आगे जब 90 फीसदी तक बिगड़ जाते हैं तभी वह सामने आते हैं। उन्होंने कहा कि समस्या अध्ययनकाल से ही शुरू होती है। क्योंकि तब विद्यार्थियों का संज्ञात्मक विकास तो हो जाता है लेकिन भावात्मक विकास की कमी के कारण चारित्रित विकास नहीं हो पाता है। इसलिए ध्यान रखना होगा कि हमें हर उद्दीपक के प्रति प्रतिक्रिया नहीं देनी है क्योंकि हम पशु नहीं हैं।
एसपी साउथ कानपुर दीपक भूकर, अनिल कुमार प्रो. दयानंद विधि महाविद्यालय, सुश्री वर्तिका दवे सीनियर एडवोकेट, सीमा जैन ने भी महिलाओं पर हो रहे विभिन्न प्रकार के अपराधों के बारे में बताया और उसके निदान भी बताए। साथ ही कहा कि हमारे देश में महिलाओं की सुरक्षा और संरक्षा के लिए कानूनों की कमी नहीं है, जरूरत केवल उसके सही समय पर अनुपालन की है।
कार्यक्रम का संचालन डॉ. अनीता शर्मा एवं डा. अंजलि पोरवाल की तरफ से किया गया। कार्यक्रम में डॉ. अरुणा बाजपेयी, प्रो. आशा अवस्थी, डा. सीमा मिश्रा, प्रो. पूनम गुप्ता, प्रो. आशीष यादव, डा. संदीप त्रिपाठी, प्रो. अनिरुद्ध यादव, प्रो. सरला मध्यान, प्रो. शिप्रा मिश्रा, प्रो. ऊषा मिश्रा, प्रो. जसनीत कौर, प्रतिमा तिवारी, प्रो. प्रेरणा अरोड़ा, प्रो. ज्योति सेंगर, कमलेश चन्द्र शर्मा, प्रो. दीपिका आदि उपस्थित रहे।
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