देवी की प्रसन्नता हेतु सप्तशती का पांचवा ग्यारहवां अध्याय का पाठ लाभदायक
घट स्थापना का शुभ मुहूर्त 17 अक्टूबर (शनिवार) को दिन में सुबह 8-.20 से 10.40 तक सर्वाधिक शुभ
एटा । शारदीय नवरात्रि सम्वत 2077 आश्वनि मास के शुक्ल पक्ष प्रतिपदा 17 अक्टूबर से प्रारम्भ हो रहे हैं । नवरात्रि पूजन हेतु घट स्थापना का सर्व मान्य शुभ मुहूर्त प्रतिपदा को दिन (शनिवार) को वृश्चिक लग्न में सुबह 8.20 से 10-40 तक सर्वाधिक उपयुक्त है । जिले के प्रख्यात आचार्य पंडित दुर्गेश शुक्ल ने इस सवांददाता से बातचीत में बताया इस बार नवरात्रि में माँ भगवती का आगमन घोड़े पर सवार हो कर हो रहा है जो सम्वत 2075 के शारदीय नवरात्र की तरह जैसा ही होगा परिणाम स्वरुप देश काल वातावरण में अच्छे परिणाम नही होंगे इस बार भगवती की रौद्रता अत्यधिक विकराल नही होगी।भगवती के इस रूप में आगमन को लेकर मान्यता है देवी रौद्र एवं विध्वंसक रूप में होती हैं । इस रूप में शांत और प्रसन्न करने के लिए भक्तों को खूब देवी पाठ करना चाहिए । दुर्गा शप्तशती का पंचम एवं एकादश अध्याय सामान्य भक्तों के लिए उपयुक्त है। देवी के साधक अपनी प्रचलित साधना से जैसा उचित हो कर सकते हैं ।
देवी के इस रूप से देश के परिवेश पर प्रभाव से सम्बंधित प्रश्न के उत्तर में पंडित शुक्ल ने बताया है कि भगवती के ऐसे रूप से अराजकता, अपराध बहुलता, दैवीय प्रकोप , आर्थिक कमजोरी के साथ पूरे राष्ट्र पर प्रभाव होता है। पडौसी देशों से सम्बन्धो में तनाव दिखेगा। वैसे भी इस वक्त पूरा वैश्विक परिवेश अदृश्य महामारी की चपेट में है।उन्होंने कहा भक्तों और साधकों को इनके कल्याणी रूप का ध्यान कर आराधन करना चाहिये।
" सर्वाबाधाप्रश्मनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरि !
एवमेव त्वया कार्यमस्म द्वेरिविनाशनम ।"
पंडित शुक्ल ने इस मंत्र का उद्धरण देते हुए बताया जगत के उपद्रवों और बाधाओं को शांत करने के लिए देवताओं ने माँ का आव्हान कर प्रार्थना की थी । उन्होंने कहा जो भक्त साधक मन वचन काया की शुद्धता से अचंचल मन आराधना में लीन होते है उन्हें माँ के शुभंकरी रूप में सद्य दिखते हैं । पंडित शुक्ल कहते हैं दुर्गा शप्तशती देवी उपासको का सर्वग्राही ग्रन्थ है जो दिव्य है । इस घोर कलियुग में इस पवित्र ग्रथ को देवी रूप में मानना चाहिए । नवरात्रि अनुष्ठान में दुर्गाष्टमी का व्रत और पूजन 23 अक्टूबर को होगा यद्यपि यह तिथि सप्तमी है परंतु सुबह 7 बजे तक है इस लिये अष्टमी इस तिथि में उदय तिथि मानी जायेगी।इस लिये अष्टमी का व्रत एवं पूजन 23 अक्टूबर को ही उचित रहेगा। नवमी 24 अक्टूबर को है जो सुबह की बेला तक है तदुपरांत 10वी तिथि 25 अक्टूबर विजया दशमी को मनाई जाएगी। इसका तिथि की अवधि 8-45 बजे तक है। पंडित शुक्ल ने बताया जो भक्त साधक काली पूजन सप्तमी तिथि को करते हैं वह 22 अक्टूबर को 7-4 0 बजे के बाद सुबह से रात्रि कालीन बेला तक कर सकते हैं। क्योंकि षष्ठी को ही सप्तमी तिथि आ जायेगी। यदि कोई जिज्ञाषु या भक्त श्रद्धालु विद्वान आचार्य पंडित दुर्गेश शुक्ल से सलाह या परामर्श करना चाहते हैं तो प्रातः 9 बजे से दोपहर 1 बजे तक विद्वान आचार्य के मोबाइल नम्बर 09410440851 पर सम्पर्क कर सकते हैं।
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