सफलता की कहानी /रेशम-सी रेशमी हुई जिंदगी: मनरेगा से रोपे 33 हजार 600 पौधों में कोसाफल उत्पादन से आयतू ने कमाए ढाई लाख 

सफलता की कहानी /रेशम-सी रेशमी हुई जिंदगी: मनरेगा से रोपे 33 हजार 600 पौधों में कोसाफल उत्पादन से आयतू ने कमाए ढाई लाख 

 



बीजापुर/ 22 अक्टूबर 2020:- करीब 6 साल पहले बीजापुर जिला मुख्यालय से 13 किलोमीटर दूर स्थित शासकीय कोसा बीज केन्द्र, नैमेड़ में लगे साजा और अर्जुन के पेड़ों पर रेशम के कीड़ों का पालन और कोसाफल उत्पादन का काम करने वाले आयतू कुड़ियम कुछ साल पहले तक अपने खेत में खरीफ की फसल लेने के बाद सालभर मजदूरी की तलाश में लगे रहते थे, फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी। यही वजह रही कि आज वह न सिर्फ कुशल कीटपालक के तौर पर कोसाफल उत्पादन कर अतिरिक्त कमाई कर रहे हैं, बल्कि गांव के 4 अन्य मनरेगा श्रमिकों को भी रेशम कीटपालन में दक्ष बनाकर कोसाफल उत्पादन से उनके जिंदगी को रेशम की तरह रेशमी बना रहे हैं।


छत्तीसगढ़ के घोर नक्सल प्रभावित बीजापुर जिले का यह आदिवासी किसान अब ग्राम पंचायत नैमेड़ में स्थित रेशम विभाग के शासकीय कोसा बीज केन्द्र कीटपालक समूह का प्रतिनिधित्व करते हुए कीटपालन और कोसाफल का उत्पादन व संग्रहण का कार्य कर रहा है। कुशल कीटपालक बनने के बाद पिछले 3 सालों में आयतू को लगभग ढाई लाख रूपए की अतिरिक्त आमदनी हुई है। रेशम विभाग के सहायक संचालक  राम सूरत बेक बताते हैं कि शासकीय कोसा बीज केन्द्र नैमेड़ में वर्ष- 2008-09 में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना अंतर्गत 3 लाख 44 हजार रूपए की लागत से 28 हेक्टेयर में लगभग 16 हजार 800 साजा और इतनी ही संख्या में अर्जुन के पौधे रोपे गए थे। आज ये पौधे लगभग 10 फीट के हरे-भरे पेड़ बन चुके हैं।


              बेक आगे बताते है कि विभाग के द्वारा यहां रेशम के कीड़ों का पालन कर कोसाफल उत्पादन का कार्य करवाया जा रहा है। साल 2015 में आयतू ने विभागीय कर्मचारी की सलाह पर यहां श्रमिक के रूप में काम करना शुरू किया था और अपनी सीखने की ललक के दम पर धीरे-धीरे कोसाफल उत्पादन का प्रशिक्षण लेना भी शुरू कर दिया था। सालभर में वह इसमें पूरी तरह से दक्ष हो चुका था। वर्ष 2016 में उसने गांव के चार मनरेगा श्रमिकों को अपने साथ समूह के रूप में जोड़ा और यहां पेड़ों का रख-रखाव के साथ कीटपालन और कोसाफल उत्पादन का कार्य शुरू कर दिया। इनके समूह के द्वारा उत्पादित कोसाफल को विभाग के कोकून बैंक के माध्यम से खरीदा जाता है। जिससे इन्हें सालभर में अच्छी-खासी कमाई हो जाती है। कुशल कीटपालक बनने के बाद कोसाफल उत्पादन से मिली नई आजीविका से जीवन में आये बदलाव के बारे में + आयतू कहते हैं कि आगे बढ़ने के लिए मेने मन में खेती-किसानी या मजदूरी के अलावा कुछ और भी करने का मन था। रेशम कीटपालन के रूप में मुझे रोजी-रोटी का नया साधन मिला है। मनरेगा से यहां हुए वृक्षारोपण से फैली हरियाली ने मेरी जिंदगी में भी हरियाली ला दी है। कोसाफल उत्पादन से जुड़ने के बाद अब मैं अपने परिवार का भरण-पोषण अच्छे से कर पा रहा हूं और अपने 3 बच्चों को अच्छी शिक्षा दिला पा रहा हूँ ।


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