इटहिया शिव मंदिर का इतिहाश आधी हकीकत आधा फसाना
राजा वृषभ सेन से जुड़ी है पंचमुखी शिव मंदिर की रहस्य
प्रतापी राजा थे वृषभ सेन जिनके दरबार मे थी एक नन्दी नांमक गाय जिससे राजा वृषभ को था बेहद लगाव जिसके दूध का प्रतिदिन सेवन करते थे राजा, कई दिनों से जंगल मे एक पत्थर पर दूध चढ़ा देती थी गाय, जिसका पता करने को सिपाहियों की राजा ने लगा रखी थी ड्यूटी, सिपाही ने बताया घने जंगल के बीच एक आम के पेड़ के निचे नन्दी गाय अर्पण करती है दूध।
राजा ने जब जगह की कराई खुदाई तो शिव लिंग हुआ प्रकट तभी राजा वृषभ सेन ने मंदिर निर्माण करा।
करते थे पूजा पुत्र राजरत्नसेन भी पत्नी स्वपर्णरेखा के साथ करते थे मंदिर में पूजा पाठ।
आम के वृक्ष पर एक बार चढ़ गया था बन्दर, जो लाखों प्रयास बाद भी नही उतर सका भूख प्यास से त्याग दिया प्राण।
उसका भी मंदिर है परिषर के मध्य।
राजरत्नसेन के श्रापित होने के बाद से समाप्त हो गया था राज पाठ मंदिर भी हो गया था जर्जर।
चंद्रशेखर मिश्र गड़ौरा ने सन 1968-69 के मध्य कराया पुनः मंदिर का निर्माण।
महराजगंज का पंचमुखी शिव मंदिर इटहिया जहाँ बहती है श्रद्धा और स्नेह की दूध भक्त पहुंच अपर्ण करते हैं बाबा भोले भंडारी पर दूध व मेवा।
महराजगज जनपद से 45 किमी दूर निचलौल विकास खण्ड के इटहिया नांमक गांव में स्थित है पंचमुखी शिव मंदिर इटहिया।
जिसका निर्माण सन 1968-69 के आस पास के करीब गरौड़ा निवासी चन्द्रशेखर मिश्रा ने कराया था।
जिस महंत के देख रेख में मंदिर का निर्माण कराया गया था उनकी समाधि भी मंदिर परिषर में स्थित है।
इतिहास के धार्मिक पुस्तकों टीकाओं में नही है कहीं इसका जिक्र।
इतिहाश के किसी पन्ने में इसके प्राचीन होने का कोई जिक्र नही है पर इसके पीछे की कई कहानियां हैं जो इसे प्राचीन बताती है जो कितना सच है और कितना फसाना यह कहा नही जा सकता है वजह यह है कि इनके न तो कोई प्रमाण मौजूद हैं, नही किसी धर्म ग्रन्थ या की किसी पुस्तक अथवा टीकाओं में इसका लेख मिलता है ।
पर कहानियां मजेदार है जो इस इलाके के बुजुर्गों के मुख से सुनी जा सकती है। इटहियां से सटे डुमरी गांव निवासी पंडित अनिरुद्ध तिवारी व मुन्ना गिरी बताते हैं।
कहानी नम्बर एक
कहा जाता है कि राजा वृषभ सेन की का एक गोशाला था जिसमे नन्दी नांमक एक गाय हुआ करती थी जो दुधारू नश्ल की थी जिससे राजा वृषभ को काफी लगाव था पर लगातार कई दिनों से दूध नही दे रही थी राजा उसके दूध न देने से हैरान थे और दूध न देने के कारणों से परेशान थे फिर राजा ने अपने चहेतों को गाय की निगरानी हेतु लगा दिया और कहा कि पता करो दूध कहां देती है,
एक सिपाही ने बताया कि इटहिया नांमक जंगल जो उस समय जंगल मे तब्दील था मे एक आम के विशाल वृक्ष के नीचे एक पत्थर है यह गाय उसी पत्थर पर अपना दूध अर्पण कर देती है।
राजा आश्चर्य चकित हुए और उस जगह की साफ सफाई कराया तो शिव लिंग देखा काफी प्रयास किया कि वह उसे अपने दरबार मे ले जाये पर ऐसा न हो सका जिसके बाद थक हार वही मंदिर बन गया और पूजा अर्चना पंचमुखी शिव मंदिर के नाम से होने लगा।
राजा के पुत्र राजा रत्नसेन भी उक्त मंदिर में पत्नी संघ पूजा अर्चना हेतु जाते थे
कहानी नम्बर दो।
स्थानिय लोगों के अनुसार 200 वर्ष पूर्व एक किसान आम के वृक्ष के नीचे खेत की जुताई कर रहा था तभी उसे यह शिव लिंग दिखा तभी से पूजा अर्चना होने लगी है।
एक अन्य कहानी के अनुसार उसी पंचमुखी शिव मंदिर से सटे पश्चिम एक आम के बागीचे में जहां आज भी काली मंदिर स्थापित है में माँ काली की भक्ति काल की एक प्राचीन पत्थर पर गढ़ी प्रतिमा खुदाई में मिली थी जो खुदाई करते समय टूट गया था जिसका अवशेष कुछ डांकु लेकर भाग रहे थे जिनकी रास्ते मे ही मौत हो गई।
आज भी उक्त काली मंदिर में शेष बचे प्रतिमा के अंश मौजूद है।
वहीं से एक गुफा पंचमुखी शिव मंदिर इटहिया तक जाता है जहां भगवान शिव का शिवलिंग मिला और शिव मंदिर इटहिया बना जिसका पूजा और भव्य मंदिर की निर्माण हुआ है ।
मेले में श्रद्धालुओं की टूट पड़ती है जन सैलाब खूब उमड़ता है मेले में भीड़
पंचमुखी शिव मंदिर इटहिया में जहां हर वर्ष सावन में भव्य मेले का आयोजन होता है कई प्रदेशों सहित नेपाल के श्रद्धालु आते है और त्रिवेणी से जल भर कर इटहिया मंदिर लाते और भवगवान शिव को चढ़ाते है। अपनी मनोकामनाओं को मांगते हैं बाबा भोलेनाथ वैसे भी दया के सागर मने जाते है तो हर भक्त की दिल से मांगी गई मुराद पूरी करते हैं और भक्त मनोकामनाओं के पूर्ण होने पर बाबा का दर्शन,पूजन,अर्चन करते हैं
कई भक्त मनोकामनाएं पूर्ण होने पर मंदिर भी निर्माण करा देते हैं जिससे आज भव्य मंदिर का निर्माण हो गया है और दुकानें सजी हुई है।
शिव लिंग के समीप पेड़ पर चढ़ गया था बन्दर उतरने की अथक प्रयास के बाद भी नही उतर सका भूख प्यास से त्याग दी प्राण।
बताया जाता है कि जहां से शिव लिंग मिला था वहां एक विशाल आम का वृक्ष था जिस पर एक बंदर चढ़ गया और वह काफी प्रयास के बाद भी नही उतर सका भूख प्यास की वजह से उसने अपना प्राण त्याग दिया जिसके बाद उसकी समाधि बना कर हनुमान मंदिर का निर्माण कर दिया गया, हनुमान मंदिर भी परिषर में स्थित है।
बाद में आम का पेड़ भी गिर गया जहां अब मंदिर बना दिया गया है और शिव लिंग मौजूद है।
मिनी बाबा धाम के नाम से है प्रसिद्धि।
ऐसी मान्यता है कि जो भक्त किसी वजह से देवघर स्थित बाबा धाम को दर्शन करने नही जा पाता है वह पंचमुखी शिव मंदिर इटहिया चला आता है और बाबा भोले नाथ का दर्शन कर जल अर्पण करता है तो यह मान लिया जाता है कि उसने बाबा धाम का दर्शन कर लिया है।
यही वजह है कि पंचमुखी शिव मंदिर इटहिया को मिनी बाबा धाम के नाम से जाना जाता है तो वही पूर्वांचल के बाबा धाम के नाम से भी इस मंदिर को प्रसिद्धि प्राप्त है।
जिला प्रशासन की देख-रेख में मेले का होता है आयोजन चप्पे चप्पे पर रहती है सिक्योरिटी कैमरे और पुलिस के जवानों की निगाहें।
पंचमुखी शिव मंदिर इटहिया है जिसकी देख-रेख आज के समय मे जिला प्रशासन करता है जिसे 3 जोन और 6 सेक्टरों में बांट कर जिला प्रशासन इसकी ठोस और कड़े सुरक्षा का इंतजाम करता है इतना ही नही चप्पे चप्पे पर पुलिस के जवान और अधिनिक सीसी टीवी कैमरे से निगरानी की जाती है जहां परिंदा भी पर नही मार सकता है।
ताकि यहां पर किसी को बाबा भोलेनाथ का दर्शन करने में कोई परेशानी न हो और अव्यवस्थाएं पैदा न हों।
कोरोना काल मे मानो ठप हो गया है पूजा अर्चना मेले में भी नही है रौनक।
इस बार यहां पर कोरोना वायरस के बढ़े प्रकोपों की वजह से मेले का आयोजन नही हो सका है और भीड़ भाड़ लगाने पर साफ मनाही है भक्तों को सोशल डिस्टेन्स में जल अर्पण करने की अनुमति एक एक करके करने दिया जा रहा है
इन धर्मिक मान्यताओं को माना जाता है इस मंदिर पर बेहद शुभ।
पंचमुखी शिव मंदिर इटहिया में कुछ धर्मागत कार्यो को करना शुभ माना जाता है जिसे लेकर आये दिन श्रद्धालुओं की भीड़ मंदिर परिषर में दिखती है जैसे रुद्राभिषेक, मुंडन, उपनयन संस्कार, विवाह, शिवरस्त्री दिवस को भी बड़ी संख्या में यहां श्रद्धालुओ की भीड़ इकट्ठा होती है।
मंदिर में प्रातः 6 बजे से पूर्वाह्न 8 बजे तक दर्शन किया जाता है विशेष पूजन व दर्शन कार्यक्रम प्रत्येक सोमवार को होता है।
सावन माह में भव्य मेले का आयोजन होता है पूरे मेले के दौरान करीब एक करोड़ श्रद्धालु दर्शन करते हैं।
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