कोरोना के खौफ के बीच अब जंगल के वन्य जीवों के संसार में एंथ्रेक्स वैक्टीरिया ने दहशत पैदा कर दी है। बिहार के वाल्मीकि नगर टाइगर रिजर्व (वीटीआर) में जिस गैंडे की मौत हुई, उसकी प्रारंभिक जांच में मौत का कारण एंथ्रेक्स सामने आया है। इसको लेकर महराजगंज के सोहगीबरवां वन्यजीव प्रभाग में भी रेड अलर्ट जारी किया गया है। वीटीआर में जिस गैंडे की मौत हुई है, वह सोहगीबरवा सेंक्चुरी में भी आता-जाता रहता था। वन्य जीवों में तेजी से फैलने की आशंका के कारण एंथ्रेंक्स बेहद घातक है। इसके मद्देनजर मुख्य वन संरक्षक वन्यजीव के निर्देश पर सोहगीबरवा सेंक्चुरी के डीएफओ पुष्प कुमार के. ने शिवपुर रेंज में रेड अलर्ट जारी कर दिया है। शिवपुर के रेंजर को आदेश जारी किया है कि वे जंगल में पशुओं की आवाजाही पूरी तरह से रोक दें। सीमावर्ती गांवों के लोगों अलर्ट कर दें कि जानवरों में एंथ्रेक्स संक्रमण फैलने का खतरा बन गया है।
19 मई को वीटीआर में एंथ्रेक्स से गैंडे की हुई थी मौत
सोहगीबरवा सेंक्चुरी से सटे बिहार के वीटीआर में एक गैंडे की 19 मई को मौत हुई थी। वीटीआर के डिप्टी डायरेक्टर ने वेट्रेनरी कॉलेज से गैंडा के मौत की वजह की प्रारम्भिक जांच कराई थी, जिसमें एंथ्रेक्स वैक्टीरिया की आशंका जताई गई थी। इसके बाद नमूना जांच के लिए आईवीआरआई बरेली भेजा गया है। मुख्य वन संरक्षक वन्यजीव पूर्वी वृत्त गोंडा के निर्देश पर डीएफओ ने शिवपुर रेंज में रेड अलर्ट जारी करते हुए क्षेत्रीय वन अधिकारी को निर्देश दिया है कि रेंज में कोई भी वन्यजीव मिले तो उसके पास मास्क व ग्लव्स बिना कोई भी वन कर्मी न जाए। उसे छुएं भी नहीं। आसपास के ग्रामीणों को सूचित कर दिया जाए कि कोई भी मृत पशु मिले तो सावधानी बरतें। पशुओं में टीकाकरण कराने के लिए भी प्रेरित किया जाए।
जानें एंथ्रेक्स क्या होता है
गोरखपुर चिड़ियाघर के प्रभारी पशु चिकित्साधिकारी डॉ. योगेश प्रताप सिंह ने बताया कि एंथ्रेक्स वैक्टीरिया से होने वाला एक घातक रोग है। यह एक जुनोटिक रोग है। क्योंकि यह मनुष्य से पशु व पशुओं से मनुष्य में फैल सकता है। इस बीमारी का संक्रमण शाकाहारी पशुओं में ज्यादा होने की आशंका होती है।
ऐसे दिखता है असर
संक्रमण के तीन से सात दिन के अंदर पशु बीमार हो जाता है। सामान्य लक्षण में 107 डिग्री फारेनहाइट बुखार, शरीर का कांपना, लड़खड़ाना, पशुओं में गर्भपात, सांस लेने में तकलीफ, अनियंत्रित हृदय गति, पशु का गिर जाना आदि प्रमुख लक्षण है। पशुओं के सभी प्राकृतिक छिद्रों से खून का स्राव भी होता है।
यह एहतियात बरतें
सामान्य जंगली पशुओं में यह बीमारी कम दिखती है। जंगल में यह बीमारी बाहर से पशुओं के चराने ले जाने से फैलती है। इसके संक्रमण से मौत के बाद पशु को कभी भी मिट्टी में दफन या पानी में नहीं निस्तारित नहीं करना चाहिए। ऐसी परिस्थितियों में मृत पशु, उसके बिछावन, चारा, मल मूत्र आदि को फौरन जला देना चाहिए।
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