महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन लगने के बाद से ही कांग्रेस, राकांपा और शिवसेना की साझा सरकार बनाने के प्रयास तेज

महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन लगने के बाद से ही कांग्रेस, राकांपा और शिवसेना की साझा सरकार बनाने के प्रयास तेज


कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) और शिवसेना की संभावित महाशिवआघाड़ी सरकार के न्यूनतम साझा कार्यक्रम का मसौदा वीरवार को तैयार हो गया। इस मसौदे पर तीनों दलों के प्रमुखों की मंजूरी के बाद सरकार बनाने की अगली शर्तों पर विचार किया जाएगा।


महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन लगने के बाद से ही कांग्रेस, राकांपा और शिवसेना की साझा सरकार बनाने के प्रयास तेज हो गए हैं। कांग्रेस और राकांपा, दोनों की तरफ से पहले ही स्पष्ट कर दिया गया था कि सरकार बनना ही जरूरी नहीं है, बल्कि सरकार का टिकाऊ होना भी जरूरी है। इसके लिए सरकार में शामिल सभी दलों के बीच हर एक मुद्दे पर स्पष्टता होनी चाहिए। इसी उद्देश्य से बुधवार से ही तीनों दलों के बीच बैठकों का दौर जारी है।


न्यूनतम साझा कार्यक्रम तैयार करने के लिए पहले चरण में बुधवार को कांग्रेस और राकांपा नेताओं के बीच बैठक हुई। अगले चरण में गुरुवार को कांग्रेस-राकांपा के साथ शिवसेना को भी शामिल किया गया। आज तीनों दलों की बैठक में कांग्रेस की ओर से पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चह्वाण, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष माणिकराव ठाकरे एवं पिछली सरकार के दौरान कुछ समय के लिए नेता विरोधी दल रहे विजय वडेट्टीवार शामिल हुए। राकांपा की ओर से इसके प्रदेश अध्यक्ष जयंत पाटिल, मुख्य प्रवक्ता नवाब मलिक एवं वरिष्ठ नेता छगन भुजबल आए। जबकि शिवसेना की ओर विधायक दल के नेता एकनाथ शिंदे एवं वरिष्ठ नेता सुभाष देसाई शामिल हुए।


बैठक के बाद प्रेस से बात करते हुए विजय वडेट्टीवार ने बताया कि तीनों दलों के नेताओं ने न्यूनतम साझा कार्यक्रम के सभी बिंदुओं पर विस्तार से चर्चा करके अंतिम मसौदा तैयार कर लिया है। अब ये मसौदा तीनों दलों के प्रमुखों, अर्थात कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी, राकांपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद पवार एवं शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे को सौंपा जाएगा। इस बीच, दो दिन के अंदर शरद पवार की दिल्ली में सोनिया गांधी से मुलाकात की संभावना भी बन रही है। वडेट्टीवार के अनुसार, न्यूनतम साझा कार्यक्रम पर तीनों दलों के एकमत होने के बाद ही सरकार बनाने की अगली शर्तों पर चर्चा शुरू की जाएगी। जाहिर है, मुख्यमंत्री पद एवं मंत्रिमंडल के बंटवारे पर अगले चरण में ही चर्चा होगी। और इस बिंदु पर किसी निष्कर्ष पर पहुंचना ही तीनों दलों के लिए टेढ़ी खीर साबित हो सकता है। 


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