कुदरती निजाम के खिलाफ अपरिपक्व देवी स्वरूपा मासूम बच्चियों के साथ दुष्कर्म एवं निर्मम हत्याओ की बढ़ती घटनाओं एवं लम्बी न्यायिक प्रक्रिया पर विशेष

कुदरती निजाम के खिलाफ अपरिपक्व देवी स्वरूपा मासूम बच्चियों के साथ दुष्कर्म एवं निर्मम हत्याओ की बढ़ती घटनाओं एवं लम्बी न्यायिक प्रक्रिया पर विशेष


सम्पादकीय


साथियों,
मनुष्य का एक रूप ही देव मानव का तो मनुष्य का ही दूसरा रूप नर पशु और नर पिशाच का माना जाता है। दोनों इस धरती पर आम मानव के रूप में पैदा होते एवं मरते खाते पीते हैं किंतु पैदा होने के बाद दोनों अपनी अपनी प्रवृत्तियों व कार्यशैली के अनुसार देव और दानव हो जाते हैं। मनुष्य अपने कर्म से मानव से महामानव और देवमानव तथा नर से नरपशु नर पिशाच यानी इंसानियत से लाखों कोस दूर शैतान बन जाता है लेकिन इन दोनों में एक खूबी यह है कि यह दोनों अपनी-अपनी मान मर्यादाओं एवं कुदरत के निजाम में रहकर अपना अपना जीवन अपने अपने हिसाब से जीते हैं और दोनों विधि के विधान या कुदरत के खिलाफ काम नहीं करते हैं। मनुष्य जीवन में काम क्रोध मद लोभ से कोई नहीं बचा और जो बच गया है वह ईश्वर समान हो गया है इसीलिए कामवासना की तृप्ति के लिए कुदरत द्वारा परिपक्वता की समय सीमा निर्धारित की गई है जिसके तहत महिला पुरुष के संबंध पति पत्नी के रूप में निर्धारित किए गये हैं। इतना ही नहीं बल्कि कामवासना की दोनों की एक उम्र भी तय की गई है इस निर्धारित अवधि के पहले कामवासना करना कुदरत के ही खिलाफ नहीं बल्कि कानून के भी खिलाफ होता है। हम भारत जैसे देश में रहते हैं जहां पर बालिका को मासिक धर्म आने के पहले तक देवी स्वरूप कन्या मानकर उसकी पूजा की जाती हैं। जिस देश में कन्याओं को देवी माना जाता हो उस देश में कन्याओं के साथ असमय दुष्कर्म होना या कामवासना की नजर से कामुक होकर देखना देवी शक्ति एवं कुदरत के निजाम का अपमान करने जैसा होता है। इन अपरिपक्व कुंवारी कन्याओं के साथ दुष्कर्म को रोकने की अनुमति किसी भी काल में नहीं दी गई है और वर्तमान समय में भी कानून बने हुए हैं। लेकिन यहां पर सवाल कानून बनने या लागू होने का नहीं है बल्कि सवाल इस बात का है कि जिस उम्र में बालिकाओं को देवी स्वरूपा देखा जाना चाहिए उस उम्र में उसके साथ दुष्कर्म करने की बात मनुष्य के दिमाग में कैसे पैदा होने लगी है?क्या ऐसे लोगों को इंसान कहा जा सकता है? इधर देवी स्वरूपा बच्चियों के साथ असमय दुष्कर्म करके उनकी हत्या करने की घटनाओं की जैसे बाढ़ सी आ गई है। बच्चियों के साथ दुष्कर्म एवं हत्या की घटनाएं देश के विभिन्न राज्यों खासतौर से उत्तर प्रदेश में हो रही हैं। अलीगढ़ घटना के बाद से एक तूफान सा खड़ा हो गया है और पूरे देश में इस घटना की निंदा की जा रही है। उत्तर प्रदेश में ताबड़तोड़ हो रही घटनाओं को लेकर जहां जनमानस उद्वेलित एवं आक्रोशित है तो विपक्षी दल भी सरकार पर हमलावर हैं। वही प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी जी प्रशासनिक आला अधिकारियों की मीटिंग बुलाकर उनके पेंच कस कर अन्य अपराधों के साथ इन शर्मनाक घटनाओं पर लगाम लगाने के कड़े निर्देश भी दे चुके हैं।फिलहाल अब तक बच्चियों के साथ हुई घटनाओं के आरोपियों को पकड़कर कानून के हवाले किया जा चुका है।इसके बावजूद घटनाओं पर रोक नहीं लग पा रही है। कहा जाता है कि लोगों के मन के अंदर कानून का भय तब खत्म हो जाता है जबकि उस कानून को लागू कराने वाले लापरवाह हो जाते हैं। यह बात सही है कि शासन सत्ता चलाने के लिए सरकार या उसकी पुलिस का इकबाल बुलंद होना आवश्यक होता है क्योंकि अपराधियों के दिलों के अंदर कानून का खौफ तभी व्याप्त होता है जब पुलिस का इकबाल बुलंद होता है और लोग अपराध करने से भय खाते हैं। बच्चियों के साथ दुष्कर्म करने वालों को न तो मानव और न ही दानव ही कहा जा सकता है ऐसे लोगों को विवेकहीन पागल जरूर कहा जा सकता है। हमारे यहां एक परंपरा है कि जब विवेकहीन कुत्ता पागल हो जाता है और काटने लगता है तब उसे गोली मार दी जाती है।देवी स्वरूपा बच्चियों के साथ दुष्कर्म करने वाले कुदरत के अपराधी हैं और ऐसे अपराधियों को कुत्ता की मौत की सजा देना भी कम होगा क्योंकि कुदरत से छेड़छाड़ करने का मतलब खुद अपनी मौत को दावत देना होता है। समाज में शांति एवं सुरक्षा व्यवस्था बनाए रखने के लिए हर व्यक्ति के अंदर कानून तोड़ने पर प्रतिफल भुगतने का भय बना होना चाहिए क्योंकि अपराधी भयमुक्त होकर तभी घिनौने कृत्य को करता हैं जब कानून का भय खत्म हो जाता है और जंगल राज कायम हो जाता है। कुदरत के नियमों और सिद्धांतों के साथ खिलवाड़ करने वालों के साथ कानूनी अदालती दंड के साथ समाजिक दंड भी आवश्यक है।सरकार को ऐसे कुदरती अपराधियों के लिए ऐसे कानून बनाने चाहिए या कानूनों को लागू करना चाहिए जिसे देख कर लोगों की रूह कांप जाए और कोई ऐसे कुकृत्य करने की भविष्य में कोशिश तो क्या दिमाग में सोच भी न सके। गतवर्षो कठुआ में एक बच्ची के साथ हुये सामूहिक दुष्कर्म एवं निर्मम हत्या के मामले अदालती फैसला आने में एक लम्बा समय लगा है। जब तक सख्ती के साथ ऐसे कुदरत के अपराधियों के साथ पेश नहीं आया जाएगा तब तक ऐसे कुदरत विरोधी शैतानों और शैतानियत भरी हरकतों को रोका नहीं जा सकता है।रामायण में भी कहा गया है कि-" अनुज वधू भगिनी सुत नारी ते सब कन्या समचारी, इन्हें कुदृष्टि विलोकै जोई ताहि वधे कुछ पाप न होई"। दुनिया के कुछ देश इस बात के लिए गवाह है जहां अपराधियों को लंबी अदालती प्रक्रिया से न गुजार कर प्रमाणिकता सिद्ध होने पर तत्काल सरेआम सरेबाजार एवं खुले आम ऐसी कठोर सजा दी जाती है जिसके कारण वहां पर कोई कानून तोड़ने की हिम्मत नहीं कर सकता है और वह देश आज भी दुनिया में मिसाल बने हुए हैं। लोकतंत्र की यही खूबी है इसमें किसी को अपराधी घोषित करने के लिए एक लंबी अदालती प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है और न्याय देने में साक्ष्य को मुख्य आधार माना जाता है।मासूम बच्चियों के साथ हो रही दुष्कर्म की घटनाओं के आरोपियों को ईमानदारी के साथ एक सप्ताह में सुनवाई करके मामले को निपटाकर अकल्पनीय सजा देने की जरूरत है। जो घटनाएं सरेआम सरे चर्चा और सारे जहान होती हैं और दुनिया जानती है कि यह घटना किसने की है उनमे लम्बी प्रक्रिया अख्तियार करना अपराधियों को बढ़ावा देने जैसा है ।दुनिया में वियतनाम अमेरिका जैसे कुछ ऐसे भी देश हैंं जहां पर कुदरत के विधान के विरुद्ध बच्चियों से दुष्कर्म करने वालों को अदालती सजा के साथ ही उन्हें नपुंसक बना दिया जाता है जिससे वह भविष्य में ऐसी घिनौनी हरकतों की पुनरावृत्ति न कर सके।
                         ।।धन्यवाद।।


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