बुआ-भतीजा के रिश्ते में खटास : मायावती का अखिलेश पर बड़ा हमला, चुनाव में हार के गिनाए यह कारण

बुआ-भतीजा के रिश्ते में खटास : मायावती का अखिलेश पर बड़ा हमला, चुनाव में हार के गिनाए यह कारण


लोकसभा चुनाव में बसपा प्रमुख मायावती व सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के बीच मधुर हुए रिश्तों में खटास अब और बढ़ती जा रही है। रविवार को लखनऊ में संपन्न हुई बसपा की राष्ट्रीय स्तरीय बैठक में मायावती समाजवादी नेताओं पर खूब बरसीं। यादव वोट बैंक ट्रांसफर नहीं कराने की तोहमत दोहराने के साथ अनेक सीटों पर बसपा की हार के लिए उन्होंने सपा के जिम्मेदार नेताओं को दोषी ठहराया। इतना ही नहीं, मायावती ने चुनाव खत्म होने के बाद अखिलेश द्वारा कोई फोन नहीं करने पर भी कड़ा एतराज जताया।


बसपा प्रमुख मायावती ने देर से सही लेकिन अपने राजनीतिक विरोधी से बदला ले ही लिया


लोक सभा चुनाव परिणाम आने के बाद गठबंधन को मिली पराजय के बाद पहली बार बसपा के नेताओं की बैठक में मायावती ने मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव पर सीधा हमला बोला और लोकसभा चुनाव में मिली हार के कारण गिनाए। उन्होंने कहा कि अखिलेश मुसलमान विरोधी हैं और लोकसभा चुनाव 2019 में मुसलमानों को टिकट देने से डर रहे थे। यही नहीं, वह मुलायम सिंह यादव पर भी हमला करने से नहीं चूकीं। मायावती ने कहा कि मुलायम सिंह यादव ने भाजपा से मिल कर ताज कॉरिडोर में उन्हें फसाने की कोशिश की।


लोकसभा चुनाव के दौरान सपा बसपा के बीच हुआ गठबंधन फेल होने के बाद टूट गया


मायावती ने हाल ही में सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव से दूरी बना ली थी और गठबंधन तोड़ने का एलान कर उपचुनाव अपने दम पर लड़ने का एलान किया था। अब मायावती ने एक बार फिर अखिलेश यादव पर जमकर हमला बोला है। बसपा की राष्ट्रीय स्तर की हुई बैठक में मायावती ने कहा कि गठबंधन के चुनाव हारने के बाद अखिलेश ने मुझे फोन नहीं किया। सतीश मिश्रा ने उनसे कहा कि वे मुझे फोन कर लें, लेकिन फिर भी उन्होंने फोन नहीं किया। मैंने बड़े होने का फर्ज निभाया और वोटों की गिनती के दिन 23 तारीख को उन्हें फोन कर उनके परिवार के हारने पर अफसोस जताया।मायावती ने कहा कि तीन जून को जब मैंने दिल्ली की मीटिंग में गठबंधन तोड़ने की बात कही तब अखिलेश ने सतीष चंद्र मिश्रा को फोन किया, लेकिन तब भी मुझसे बात नहीं की। मायावती ने कहा कि अखिलेश ने सतीष चंद्र मिश्रा से मुझे संदेश भेजवाया कि मैं मुसलमानों को टिकट न दूं, क्योंकि उससे और ध्रुवीकरण होगा, लेकिन मैंने उनकी बात नहीं मानी।


मायावती ने आरोप लगाया कि मुझे ताज कॉरिडोर केस में फंसाने में भाजपा के साथ मुलायम सिंह का भी अहम रोल था


 उन्होंने कहा कि अखिलेश सरकार में गैर यादव और पिछड़ों के साथ नाइंसाफी हुई, इसलिए उन्होंने वोट नहीं किया। इसके अलावा सपा ने प्रमोशन में आरक्षण का विरोध किया था इसलिए दलितों, पिछड़ों ने उसे वोट नहीं दिया।उन्होंने कहा कि बसपा के प्रदेश अध्यक्ष आरएस कुशवाहा को सलीमपुर सीट पर समाजवादी पार्टी के विधायक दल के नेता राम गोविंद चौधरी ने हराया। उन्होंने सपा का वोट भाजपा को ट्रांसफर करवाया, लेकिन अखिलेश ने उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की।


कई बार प्रयोग फेल हो जाते हैं....


बसपा से अलग होने के बाद सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने कहा था कि यह एक प्रयोग था जो फेल हुआ और इसने हमारी कमजोरियों को उजागर किया। उन्होंने कहा था कि भविष्य के लिए वह अपनी पार्टी के साथ इस मुद्दे पर चर्चा करेंगे। अखिलेश ने कहा था कि मैं विज्ञान का छात्र रहा हूं, वहां प्रयोग होते हैं और कई बार प्रयोग फेल हो जाते हैं, लेकिन आप तब यह महसूस करते हैं कि कमी कहां थी। लेकिन मैं आज भी कहूंगा, जो मैंने गठबंधन करते समय भी कहा था, मायावती जी का सम्मान मेरा सम्मान है। बता दें इस लोकसभा चुनाव बसपा को 10 और सपा को 5 सीटें मिली थीं।


ले लिया मुलायम परिवार से राजनीतिक बदला


बसपा प्रमुख मायावती ने 2 जून, 1995 की घटना का मुलायम सिंह यादव परिवार से राजनीतिक बदला ले लिया। 2014 का लोकसभा एवं 2017 विधानसभा में मिली पराजय को मायावती ने बहुत ही सधे राजनीतिज्ञ की तरह 2019 में सपा से गठबंधन करके फायदा उठाया। मायावती जानती थी कि अगर वह अकेले लोकसभा चुनाव लड़ेंगी तो स्थिति 2014 जैसी ही हो सकती है। इसलिए तीन उपचुनाव में सपा को मिली सफलता का फायदा उठाया।


अतिउत्साहित में मायावती के दरवाजे पहुंच गए अखिलेश


बसपा कभी भी उपचुनाव नहीं लड़ती है और 2017 में भी लोकसभा सीटों पर उपचुनाव नहीं लड़ा, जिसका फायदा सपा को मिला। इन तीनों उपचुनाव को अदूरदर्शी अखिलेश यादव ने सपा-बसपा के तालमेल की जीत समझा। राजनीतिक अनुभवहीनता के कारण उपचुनाव में मिली सफलता के बाद अतिउत्साहित होकर धन्यवाद देने मायावती के दरवाजे पहुंच गए। राजनीत की चतुर खिलाड़ी मायावती ने मौके की नजाकत को भांपते हुए बड़ी सियासत की चाल चली। मायावती ने गेस्ट हाउस कांड को भूलाकर राजनीतिक फायदे के लिए अखिलेश से चुनावी गठबंधन कर लिया। अखिलेश ने समर्पण भाव से उत्साहित होकर स्वीकार किया और यह बयान देते रहे कि गठबंधन को मजबूत करने के लिए किसी भी तरह के समझौते के लिए तैयार हैं।


38 सीटों में 10 सीटें जीतने में सफल रहीं मायावती


मायावती जानती थीं कि सपा बसपा के बीच की ढ़ाई दशक पुरानी कड़वाहट निचले स्तर के कार्यकर्ताओं तक समाप्त नहीं हो सकती। इसलिए सीट बटवारें में उन सीटों को लिया जो मुस्लिम और दलित समीकरण से जीत सकती थी। 38 सीटें में 24 सीटें ऐसी थीं, जिन पर दलित मुस्लिम और बसपा कैडर का पूर्व चुनावों में प्रभाव देखा गया था। इसका फायदा भी मायावती को मिला और 38 सीटों में 10 सीटें जीतने में सफल रहीं। अखिलेश यादव मायावती के राजनीतिक दूरदर्शिता के शिकार हो गए। बसपा प्रमुख मायावती ने यह कहा भी था कि अखिलेश राजनीतिक रूप से परिपक्व नहीं हैं। गठबंधन ने यह साबित भी कर दिया कि अखिलेश वास्तविक रूप से अनुभवहीन हैं। मुलायम सिंह यादव ने तो गठबंधन के बाद ही कहा था कि अखिलेश समझौता करके आधी सीट पहले ही हार चुके हैं। मुलायम सिंह यादव 2017 में कांग्रेस और 2019 में बसपा से गठबंधन के विरोधी रहे हैं, लेकिन अखिलेश ने उनके सुझावों को दरकिनार किया।


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